चियांकी हवाईपट्टी पलामू प्रखंड का एक महत्वपुर्ण भाग है जो डालटनगंज के नजदिक चियांकी में स्थित है । लम्बे समय से ये अपने उत्थान और विकास के लिये एक चर्चा का विषय बना हुआ है । यहाँ के आस पास के जगहो के लोगो के लिये एक साप्ताहिक अवकास पर घुमने- फिरने के अलावा एक पिकनिक स्पाट के रूप मे देखा जाता है । यहाँ आस पास के यूवाओ के लिये शारिरीक व्यायाम तथा बुजुर्गो के टहलने के लिये एक मात्र जगह है। बच्चे और बुजुर्ग प्रात:काल सुर्योदय के मनोरम दृश्य का आनंद उठाते है । लडके यहाँ अकसर सेना और पूलिस की भर्तियो के लिये दौड का अभ्यास करते हैं। बहुत सारे यहाँ के यूवाओ के लिये यह स्थान देश कि सुरक्षा में तैनात रक्षको के लिये गवाह बना हुआ है।
लगभग 1.2 किलोमीटर की लम्बाई में फैला पलामू मे इस हवाईअड्डे का इस्तेमाल देश भर के VIP लोगो के समय समय पर आगमन के लिये होता रहता है । यहाँ पर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदीरा गांधी से लेकर वर्तमान मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे देश के और बहुत सारे नेताओ के अपने चुनावी प्रचार प्रसार के लिये ये सिर्फ एक आकर्षण का केंद्र बना हुआ है । हाल ही में केंद्र सरकार की पहल से यहाँ कुछ विकास के कार्य कि शुरुआत हुई थी । अभी किनही वजहो से विकास कार्यो मे गतिरोध उत्पन्न है। पलामू जिले में स्थित यह इकलौता विमानतल है जहाँ कभी छोटे विमान रनवे पर दौडते थे लेकिन आजकल यहाँ अधिकान्शत: हेलिकाप्टर उतरते हैं।
कुछ वर्ष पहले भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) की पांच सदस्यीय टीम ने झारखंड के उड़ान निदेशक कैप्टन एस0के0 सिन्हा और ग्रामीण विकास पलामू के निदेशक हैदर अली के साथ चियांकी हवाई पट्टी का निरीक्षण किया। सूत्रों के अनुसार कि जिस जमीन पर चियांकी हवाई पट्टी बनी है वह सिंचाई विभाग की है और इसके लिए जो जमीन अधिग्रहीत की गई थी वह बिहार के अविभाजित होने के दौरान की गई थी। भूमि अधिग्रहण से जुड़ी कई फाइलें अभी भी बिहार के औरंगाबाद कलेक्ट्रेट के पास हैं, हालांकि अंचल अधिकारी सदर पलामू ने जमीन का कुछ नक्शा तैयार कर लिया है जिसे निरीक्षण दल को दिखाया गया है । झारखंड भवन निर्माण निगम ने इस हवाई पट्टी की DPR (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट) तैयार कर ली है और यह डीपीआर राज्य सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग को भेज दी गई है। इस चियांकी हवाईअड्डे को व्यवस्थित रूप देने के लिये जल निकासी कि व्यवस्था और कुछ दुरी पर पक्का दिवाल से घेर दिया गया है, पर यह केवल एक सुरक्षा की दृष्टि से औपचारिकता मात्र भर है। पांच साल पहले करीब चारदीवारी के निर्माण के लिए 62 लाख रुपये की राशि पलामू को आवन्टित कि गई थी, लेकिन जमीन के पेचीदा विवाद के कारण राशि खर्च नहीं हो सकी । धिरे- धिरे यह मवेशियो के लिये उतम चारागाह, बच्चो के लिये कृडास्थल और नवयूवक जोडो के लिये रोमांटिक जगहो मे शुमार होते जा रहा है।
विकास कार्यो में विलम्ब को मद्देनजर यह अतिआवश्यक हो गया है कि पलामू के जनता को चाहिये कि जबतक इस हवाईअड्डे का पुनरुत्थान नहीं हो जाता पलामू में इसे एक धरोहर के रूप मे रखकर इसका उचित रख-रखाव, प्रदूषण रहित और सवच्छ पर्यावरण के साथ इसका इस्तेमाल करे। इस हवाईअड्डे को व्यवस्थित रूप से व्यवसायिक उडान के लिये विकसीत करने कि दिशा में सरकार द्वारा शुरू किया गया पहल फिलहाल अधूरा है। सरकार इन विषयो को संज्ञान मे रखकर अतिशिघ्र पलामू के इस अनूठे और एकमात्र हवाईपट्टी को संरक्षित कर इसका विकास करने पर जोर देना चाहिये, ताकि इस पूरे पलामू प्रमंडल के लिये एक व्यवसायिक उडान के साथ आवागमन का साधन बन सके । लोग आकस्मिक बिमार या अन्य कारणो से अतिशिघ्र दिल्ली, पटना या रांची से और कई जगहो पर पहुंच सके।